Sidebar Menu

बिना वर्ग संघर्ष-सामाजिक बदलाव और बिना चेतना-संगठन के संघर्ष संभव नहीं

मजदूर वर्ग के पास संगठन के अलावा दूसरा कोई हथियार नहीं है, इसलिए हमारे संगठन का सवाल सबसे महत्वपूर्णं सवाल है।


प्रमोद प्रधान
मजदूर वर्ग के पास संगठन के अलावा दूसरा कोई हथियार नहीं है, इसलिए हमारे संगठन का सवाल सबसे महत्वपूर्णं सवाल है। 1993 में सी.आई.टी.यू. ने भुवनेश्वर प्रस्ताव के नाम से विख्यात अपना संगठन संबंधी दस्तावेज पारित कर वैचारिक स्पष्टता के आधार पर संगठन की कार्यप्रणाली को एक क्रांतिकारी ट्रेड यूनियन के अनुकूल बनाने का प्रयास किया।

इसी बीच अंतर्राष्ट्रीय पटल पर उभरे एकध्रुवीयता के हालात और भूमण्डलीकरण, उदारीकरण, निजीकरण के नीति निजाम के कायमी ने आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक ढांचों में बड़े बदलाव ला दिये। इन बदलावों ने मजदूर वर्ग के हालातों पर न सिर्फ नकारात्मक असर डाला बल्कि ट्रेड यूनियन आंदोलन व उसके संगठनों के समक्ष नई चुनौतियां खड़ी कर दी।

इन चुनौतियों के संदर्भ में वैचारिक स्पष्टता और सांगठनिक ढंाचे व कार्यप्रणाली को प्रभावी बनाये बिना रास्ता नहीं बनाया जा सकता। इसलिए सीटू ने भुवनेश्वर प्रस्ताव संबंधी अपने सांगठनिक दस्तावेज को अद्यतन करने का कार्यभार तय किया। एक जनवादी प्रक्रिया से विभिन्न स्तरों पर गहन चर्चा कर हाल ही में 23 से 26 मार्च 2018 को कोझीकोड (केरल) ने सम्पन्न सीटू जनरल काउंसिल ने यह काम पूरा किया। इसी के साथ जनरल काउंसिल ने वर्तमान राष्ट्रघाती नीति निजाम (मोदी की केन्द्र व अन्य भाजपा राज्य सरकारों ने) के खिलाफ मुद्दों को नीति व नीति को राजनीति से जोड़ते हुए देश के मेहनतकशों के व्यापकतम हिस्सों में अभियान चलाकर 5 सितम्बर 2018 को दिल्ली में मजदूरों-किसानों की ऐतिहासिक रैली करने का भी निर्णय किया। सीटू की स्पष्ट समझ है कि वर्तमान निजाम अपनी लूटतंत्र को जारी रखने के लिए जहां उदारीकरण की आर्थिक नीतियों को लागू कर रही है वहीं साम्प्रदायिक ध्रूवीकरण को भी अपना आधार बनाये हुए है। इसलिए इन दोनो के खिलाफ एक साथ लड़ाई लडऩी होगी।

अद्यतन सांगठनिक दस्तावेज की रोशनी में प्रदेश के लिए ठोस कार्ययोजना तैयार करने के साथ उपरोक्त अभियान के संबंध में योजना बनाने के लिए हर राज्य में कार्यशालायें आयोजित करने का आह्वान जनरल काउंसिल ने किया।

14-15 जून 2018-मध्यप्रदेश कार्यशाला

इस दो दिवसीय कार्यशाला में 25 जिलों से कोयला, दवा प्रतिनिधि, सीमेंट, आंगनवाड़ी, निर्माण, आशा-उषा, दैनिक वेतनभोगी, हम्माल-पल्लेदार जैसे क्षेत्रों व रैमण्ड्स, ग्रेसिम, नोट प्रिंटिंग प्रेस के साथ लघु उद्योगों की यूनियनों से आये कुल 116 प्रतिनिधि शामिल हुए। प्रतिनिधियों ने 19 राज्यपदाधिकारी, 21 राज्य समिति सदस्य (कुल 55 में से 40) के अलावा 6 जिलों व उद्योगों के नेतृत्वकारी साथी शामिल थे। कार्यशाला का उद्घाटन सीटू राष्ट्रीय अध्यक्षा डॉ. के. हेमलता तथा समापन सीटू राष्ट्रीय सचिव डॉ. कश्मीर सिंह ने किया। (इसके संबंध में रिपोर्ट लोकजतन में प्रकाशित हो चुकी है) यह सांगठनिक कार्यशाला मध्यप्रदेश सीटू राज्य समिति के लिए न सिर्फ उपयोगी थी बल्कि एक जीवंत व दिशानिर्देशक आयोजन भी साबित हुई।

मुद्दे आधारित सत्र-जीवंत भागीदारी

इस सांगठनिक कार्यशाला में मध्यप्रदेश राज्य समिति की ओर से दो दस्तावेज प्रस्तुत किये गये। पहला, अद्यतन दस्तावेज के प्रकाश में मध्यप्रदेश के संबंध में ठोस सूत्रीयकरण व कदम तथा दूसरा 5 सितम्बर अभियान की योजना व लामबंदी हेतु ठोस प्रस्ताव के संबंध में था। सांगठनिक दस्तावेज में प्रस्तुत विभिन्न विषयों में से प्राथमिकताओं का निर्धारण व उस पर अमल के अनुभव, जनवादी कार्यप्रणाली, कार्यकर्ता विकास व राजनैतिक प्रशिक्षण, फण्ड व उसका रख-रखाव जैसे चार विषय ही मुख्यत: बहस के लिए प्रस्तुत किये गये।

सांगठनिक विषयों पर चर्चा हेतु समूचे प्रतिनिधियों को 14 समूहों में विभाजित किया गया तथा प्रत्येक विषय पर प्रथक-प्रथक प्रस्तुतिकरण व समूह चर्चा व उसके बाद प्रत्येक समूह से एक साथी द्वारा अपने समूह के निष्कर्षों को कार्यशाला में प्रस्तुत करने की पद्यति अपनायी गई। इस प्रक्रिया से न सिर्फ प्रत्येक विन्दु पर केन्द्रीय व तथ्यपरक चर्चा हो सकी बल्कि चर्चा में अधिकतम प्रतिनिधियों की जीवंत भागीदारी भी हुई। चारों प्रश्नों पर हुई प्रथक-प्रथक चर्चा में 14-14 वक्ताओं ने कार्यशाला में विचार प्रस्तुत किये। कार्यशाला प्रतिनिधियों के लिए जनवादी कार्यप्रणाली को लागू करने का यह एक महत्वपूर्णं व उपयोगी अनुभव साबित हुआ।

सांगठनिक निष्कर्ष-भावी सुधार की आधारशिला

सांगठनिक दस्तावेज में प्रस्तुत विश्लेषण, तथ्यपरक आंकलन, उचित सांगठनिक कदमो की रोशनी में जब प्रतिनिधियों ने अपनी-अपनी इकाई के सांगठनिक हालातों को जांचने परखने का प्रयास किया तो यही आम निष्कर्ष निकला कि हालात चिंताजनक हैं। यह भी निष्कर्ष था कि इन चिंताजनक हालातों के निमार्ण में जनवादी कार्यप्रणाली के घोर उल्लंघन के साथ सांगठनिक कार्यप्रणाली के तमाम बुनियादी पहलूओं की अनदेखी करने का ही योगदान है। इसी के साथ आम अनुभव व निष्कर्ष यही था कि इन हालातों को बदलकर सही दिशा में एक लंबी छलांग लगाने के लिए जरूरी क्षमता, संसाधन व परिस्थितियां तो हैं परन्तु जिनका हम इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए कार्यशाला ने इस कमजोरी को दूर करने के लिए कार्यकर्ता विकास, नियमित राजनैतिक-सांगठनिक प्रशिक्षण, प्रत्येक स्तर पर जनवादी कार्यप्रणाली को लागू करना, बजट बनाकर फण्ड एकत्रीकरण तथा उसके सही रख-रखाव के लिए ठोस सुझाव प्रस्तुत किए। इस पर आम प्रतिनिधियों न सिर्फ अपनी सहमति प्रस्तुत की बल्कि यह माना कि यदि इन्हें लागू नहीं किया गया तो हम किसी भी कीमत पर आगे नहीं बढ़ सकते। अब राज्य समिति को समयबद्ध कार्यक्रम बनाकर जिद के साथ यूनियन स्तर तक इसे लागू करने का काम अपने हाथों में लेना होगा।

समयानुकूल हस्तक्षेप-महत्वपूर्णं अभियान

यह तय है कि वर्तमान राजनैतिक आर्थिक व्यवस्था (पूंजीवादी भू-स्वामी तंत्र) अब आम जनता की बुनियादी समस्याऐं तो दूर यहां तक कि रोजमर्रा के प्रश्नों का भी समाधान करने की क्षमता खो चूकी है। इसलिए जरूरत है ऐसे विकल्प के निर्माण की जो वर्तमान प्रश्नों का हल प्रस्तुत करते हुए अंतिम समाधान के लिए संघर्ष को आगे बढ़ा सके। यह प्रक्रिया मजदूर, खेत मजदूर, किसानों की अटूट मोर्चाबंदी व समाज के विभिन्न शोषित समुदायों को अपने संघर्षों में शामिल कर लेने के जरिए ही आगे बढ़ेगी। 5 सितम्बर 2018 को दिल्ली में आयोजित हो रही मजदूर, खेत मजदूर, किसान रैली इसी प्रक्रिया का एक महत्वपूर्णं कदम है।

कार्यशाला में मध्यप्रदेश में इस अभियान व लामबंदी के लिए ठोस लक्ष्य व कार्यक्रम बनाया गया। इसमें जिला व स्थानीय स्तर पर किसान सभा व खेत मजदूर यूनियन के साथ समन्वयन बनाकर तय कार्यक्रम को लागू करने पर विशेष जोर दिया गया। 9 अगस्त सत्याग्रह, 14 अगस्त रात्रि जागरण के लिए योजना बनाने के साथ 5 सितम्बर दिल्ली रैली हेतु इकाईवार लक्ष्य भी कार्यशाला में तय किए गये।

मध्यप्रदेश से मजदूर मोर्चे की ओर से इस दिल्ली रैली में 18 हजार श्रमिकों को शामिल करने का लक्ष्य तय करने के साथ 5 लाख पर्चे, 10 हजार पोस्टर, 2 हजार बातचीत के बिन्दूओं की पुस्तिका व अखिल भारतीय केन्द्र से भेजी गई एक विशेष पुस्तिका की 5 हजार प्रतियां छापकर अभियान चलाने का निर्णय लिया गया। अभियान के लिए प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में जत्थे निकालने की भी योजना बनाई गई। इस अभियान में मजदूर बस्तियों में सम्पर्क के साथ उनके कार्य स्थलों पर सभाऐं, नुक्कड़ मीटिंग व समूह बैठकें करने की भी योजना बनाई गई। यह प्रयास होगा कि जहां तक हम नहीं पहुंचे वहां तक पहुंचकर व्यापक हिस्सों में अपने संदेश को ले जायें और दिल्ली रैली में ऐतिहासिक भागीदारी करायें। यह तय है कि 5 सितम्बर का यह अभियान मध्यप्रदेश के सबसे बड़े अभियानों में तो शामिल होगा ही।

Leave a Comment