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कर्ज माफी में आ रही बाधाओं को दूर करो

कर्जमुक्ति के बाद यह भी जरूरी है कि दोबारा किसान संकट में न फसे, इसलिए कर्जमुक्ति के साथ ही लागत का डेढ़ गुना दाम भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

जब किसानों के कर्ज माफ करने की बात होती है, तो मध्यप्रदेश किसान सभा को  माफी शब्द से घोर आपत्ति है। क्योंकि माफी तो तब होती है, जब यह कर्ज किसान की वजह से हुआ हो। जबकि पिछले दो दशक से देश की हर राजनीतिक पार्टी कृषि संकट की बात कर रही है। संकट के समाधान के लिए स्वामीनाथन आयोग का गठन किया गया। उस आयोग ने 2005 में अपनी रिपोर्ट दी। जिसमें लागत के डेढ़ गुना दाम देने की सिफारिश की गई। आज 14 साल बीत जाने के बाद भी इन सिफारिशों को लागू नहीं किया गया है। पिछले 14 साल का एरियर ही इतना बनता है कि किसानों के कर्ज से कई गुना अधिक है। इसलिए किसान सभा कर्ज माफी की नहीं, बल्कि कर्जमुक्ति की बात करती है। कर्जमुक्ति के बाद यह भी जरूरी है कि दोबारा किसान संकट में न फसे, इसलिए कर्जमुक्ति के साथ ही लागत का डेढ़ गुना दाम भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। नवंबर माह में दिल्ली में हुए किसान मार्च में 21 राजनीतिक दलों ने वादा किया है कि वे संसद में किसानों के इन दोनो मुद्दों को उठायेंगे।

खैर मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने वादा किया था कि वह सत्ता में आने के बाद दस दिन में किसानों के कर्ज माफ करेगी। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सरकार बनने के तुरन्त बाद किसानों के 31 माच18 तक के कर्ज माफ करने की घोषणा थी। केवल माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और मध्यप्रदेश किसान सभा ने ही मांग की थी कि यह घोषणा अपूर्ण है, किसानो के 17 दिसंबर 18 तक के कर्जे माफ होने चाहिए। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी के नेतृत्व में माकपा के उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मंडल ने भी मुख्यमंत्री से मिलकर यह मांग दोहराई थी। बाद में राज्य सरकार ने 12 दिसंबर 18 तक के कर्जमाफ करने की घोषणा की है।

भाजपा इस घोषणा के बाद खामोश है। केवल पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही बीच बीच में बयान देते हैं। किंतु कर्जमाफी के दौरान सहकारी समितियों में पिछले 15 साल के जो घोटाले सामने आ रहे हैं, उससे वे भी अब खामोश हो गए हैं। मुख्यमंत्री के अनुसार यह घोटाला एक हजार करोड़ से अधिक का है, इस घोटाले की अलग से जांच करने की बात भी मुख्यमंत्री ने कही है। जांच की घोषणा के बाद भाजपा इतनी भयभीत है कि उसने जांच कराये जाने का औपचारिक स्वागत तक भी नहीं किया है। 

12 दिसंबर तक कर्जमाफ करने की बात जहां किसानों की एक जीत है, वहीं अभी तक बैंकों और सहकारी समितियों की ओर से जो सूचियां जारी हो रही हैं, वह 31 मार्च तक की है। 12 दिसंबर को लेकर अभी भी भ्रम की स्थिति है। दूसरा सरकार ने भी घोषणा की है कि किसानों के साहूकारों और सूदखोरों के निजी कर्जे भी माफ किए जायेंगे। मगर इस संबंध में किसी भी प्रकार की कोई हलचल किसी भी स्तर पर नहीं हो रही है। जबकि 70 प्रतिशत से अधिक किसान निजी सूदखोरों के चंगुल में फंसे हुए हैं। जब तक उन्हें कर्ज से मुक्त नहीं किया जाता है, तब तक कर्जमाफी की बात करने के कोई मायने नहीं हैं।

कर्जमाफी को लेकर कई तरह की समस्यायें हैं। उदाहरण के लिए किसान की मृत्यु हो जाने के बाद जमीन अभी भी उसके ही नाम है। किसान की विधवा या परिजन आवेदन करते हैं तो उसमें तकनीकी तौर पर स्वीकार नहीं किया जा रहा है। किसान सभा की मांग है कि इस तरह की तकनीकी दिक्कतों को दूर किया जाना चाहिए। यदि ग्राम पंचायत का पंचनाम आ जाता है कि मृतक के उत्तराधिकारी यही आवेदक हैं तो उसे ही प्रमाण मानकर कार्यवाही की जानी चाहिए।
गुलाबी फार्म में समस्या अंकित करने का कॉलम ही नहीं है। इस प्रकार की कई त्रुटियां हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जब किसान आवेदन करने जाते हैं, तो उनसे जो आवेदन मांगे जाते हैं, वे तब जाकर उन्हें पता लगता है कि उन्हें क्या क्या दस्तावेज लगाने हैं। इन दस्तावेजों की फोटोकापी की व्यवस्था भी ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं होती है। इस प्रकार दो तीन या कई बार तो चार चार दिन का समय लग जाता है। 

सरकार के अनुसार ही प्रदेश के 55 लाख किसानों को इस योजना का लाभ मिलने वाला है। मगर यह लाभ तभी मिल पायेगा, यदि किसान कर्जमुक्ति के लिए आवेदन जमा करेंगे। सरकार की ओर से कर्जमाफी के आवेदन करने की अंतिम तिथि 5 फरवरी रखी गई है। वर्तमान परिस्थितियों और प्रशासनिक अमले को देखते हुए यह संभव ही नहीं है कि इतने कम समय में सारे किसान अपने आवेदन जमा करवा पायें। इसलिए आवेदन जमा करने की तारीख आगे बढ़ाई जानी चाहिए। इसे बढ़ाकर 28 फरवरी किया जाना चाहिए।

प्रदेश एक और विडंबना के दौर से गुजर रहा है। मुख्यमंत्री द्वारा किसानों के कर्जमाफ करने की घोषणा को एक माह हो चुका है। मगर इस दौरान भी करीब एक दर्जन किसानों की आत्महत्या करने की खबरें अखबार में छपी हैं। यह सोचने की बात है कि कर्जमाफी की घोषणा भी किसानों में विश्वास क्यों नही पैदा कर पायी हैं। जाहिर है कि इस संकट को प्रशासनिक स्तर पर निबटने से समस्या का समाधान नही हो सकता है। इसके लिए दो रास्ते हैं। 

पहला रास्ता यह है कि केरल की वाममोर्चा सरकार की तरह किसान कर्जराहत आयोग का गठन करना होगा। जो किसानों के कर्ज के संबंध में और हर तरह के कर्ज के बारे में रिपोर्ट तैयार करे। केरल के आधार पर किसानों के संस्थागत और गैइ संस्थतागत कर्ज भी माफ करने होंगे। मगर यह काम सिर्फ नौकरशाहों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। इसलिए राज्य और जिला स्तर पर किसान संगठनों और राजनीतिक दलों को मिलाकर निगरानी समितियों का गठन किया जाना चाहिए, ताकि नौकरशाही पर अंकुश लग सके। 

यह बात याद रखने की है कि सिर्फ कर्ज माफ कर देने से काम नहीं चलेगा। कृषि का लाभ का व्यवसाय बनाना होगा। यह तब तक नहीं बनेगा, जब तक स्वामीनाथ आयोग की सिफारिश के आधार पर किसानों को उसकी फसल के वाजिब दाम नहीं मिलेंगे। और यह दाम केवल घोषित ही नहीं होने चाहिए, बल्कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मंडियों में किसानों की लूट न हो। भलें ही यह केन्द्र सरकार ही कर सकती है, मगर राज्य सरकार विधान सभा में इस प्रकार का प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार से मांग तो कर ही सकती है। 


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जसविंदर सिंह

राज्य सचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) मध्यप्रदेश

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