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लोकजतन सम्मान 2019 : राम विद्रोही : बुरी आदतों वाले अच्छे आदमी

वे थोड़ा सा भी तुडऩे या मुडऩे की कोशिश करते तो किसी भी हाथ का कंगन या कड़े हो सकते थे। उन्हें थोड़ा सा भी व्यवहारिक ज्ञान होता तो वह किसी भी दरबार के नवरत्नों में शुमार हो सकते थे। मगर यह सब नहीं है।

हां यह बात सोलह आने सच्च है। राम विद्रोही खराब आदतों वाला अच्छा आदमी है। उसकी बुरी आदतों ने उसे बुरा होना से बचाया है। सामाजिक व्यवहार और सामाजिक ज्ञान से उनकी अनभिज्ञता ने रक्षा कवच बनकर इस अच्छे आदमी की हिफाजित की है। वे थोड़ा सा भी तुडऩे या मुडऩे की कोशिश करते तो किसी भी हाथ का कंगन या कड़े हो सकते थे। उन्हें थोड़ा सा भी व्यवहारिक ज्ञान होता तो वह किसी भी दरबार के नवरत्नों में शुमार हो सकते थे। मगर यह सब नहीं है। और सच मानिए लोकजतन को अपना पहला सम्मान देने के लिए एक ऐसे ही अज्ञानी और बुरी आदतों वाले आदमी की तलाश थी, जो अंतत: डा.राम विद्रोही पर आकर पूरी हुई।

डा.राम विद्रोही धारा के विपरीत बहने वाले व्यक्ति हैं। उस दौर में जब अखबारों को पत्रकार नहीं चाहिए। जब अखबार मालिकों की जरूरत संपादक नहीं एग्जीक्यूटिव्स हैं। तब राम विद्रोही ने पत्रकारिता की है। संपादन कर सामाजिक सरोकारों की सहेजा है। उनकी संरचना की है। यह सत्य है कि पत्रकारिता से उनकी रोजी रोटी चली। मगर उन्होने पत्रकारिता को कभी व्यवसाय के रूप ने नहीं लिया। वे पत्रकारिता को एक मिशन मान कर चले। उन्होने पत्रकारिता को जिया है। और इस तरह जीने के जोखिम भी उठाये हैं।
साठ साल की निरंतर पत्रकारिता के बाद वे अब सेवानिवृत हुए हैं। या यूं कहा जाये कि उन्होने ऐच्छिक सेवानिवृत्ति ली है। क्योंकि संस्थान का प्रबंधन उन्हें अभी भी मुक्त करने को तैयार नही था। मगर अब वे पत्रकारिता से कुछ आगे करना चाहते हैं। कुछ रचनात्मक। कुछ चुभती हुई सचाईयों से साफ साफ रखना चाहते हैं। और पूरा वक्त इसी पर लगाना चाहते हैं।

वे दुविधाओं की मझधार को तैर कर पार करने वाले पत्रकार हैं। और जैसा कि मैने कहा है, उसके लिए बुरी आदतों का होना पहली शर्त है। प्रदेश के वरिष्ठतम पत्रकारों में उनकी गिनती होती है। आसपास नजर दौड़ाई जाये, तो अधिकांश पत्रकारों की उम्र से ज्यादा समय तक पत्रकारिता करके वे इस व्यवसाय को अलविदा कह चुके हैं। कबीर के शब्दों में वैसी ही धर दीन्हीं चदरिया। वे इस चदरिया को बेदाग उतार कर आये हैं। 

कबीर की परंपरा का वाहक होने के लिए कबीर की तरह जीना जरूरी है। हर मुद्दे पर समाज को चुनौती देना जरूरी है। और वैसे भी पत्रकार सरकार का स्थाई विपक्ष होता है। उसे होना चाहिए। लोकतंत्र का यह चौथा खंभा सरकार पर पैनी नजर रख कर लोकतंत्र को मजबूत कर सकता है। मगर यह दौरा अलग तरह का दौर है। पिछले कुछ वर्षों में, जब मीडिया, गोदी मीडिया हो गया है, या मोदी मीडिया हो गया है, तो लोकतंत्र कमजोर हुआ है। यह दौर आपातकाल के दौर से भी कठिन दौर साबित हो रहा है।

मगर डा. राम विद्रोही व्यवस्था के नहीं, विद्रोह के पत्रकार हैं। इसलिए उन्होने अपनी अलग पहचान बनाई है। अगर वे थोड़े समझदार होते तो इस पहचान की कीमत भी वसूल सकते थे। मगर वे उन गिने चुने पत्रकारों में से हैं, जिन्हें कलैक्टर, कमिशनर या किसी अधिकारी के  दफ्तर की सीढिय़ा चढ़ते कभी नहीं देखा गया। उनके बंगलों पर हाजिरी लगाना तो बहुत दूर की बात है। अगर उन्हें व्यवहारिक ज्ञान होता तो अपने प्रभाव का इस्तेमाल अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवाने या नौकरी की व्यवस्था करने के लिए कर सकते थे। और वो दलाली जो पीत पत्रकारिता की निशानी बन गई है। फिर चाटूकारिता, जिसे आज की पत्रकारिता का मिशन मान कर चला जाता है। वो सब राम विद्रोही के लिए बहुत आसान था। सत्ता के गलियारों तक उनकी पहुंच उनके लिए पलक पांवड़े बिछा सकती थी, ऐश्वर्य की सारी व्यवस्था पलक झपकते हो सकती थी। मगर  खराब आदतें कभी कभी आदमी को इंसान भी बना देती हैं। 

इन्ही आदतों की वजह से वे अक्सर शहर और सामाज से जुड़े रहे। पगारा को तिघरा से जोडऩे की कल्पना- राम विद्रोही की कल्पना है। इस कल्पना को उन्होंने सिर्फ अपने संपादकीय तक सीमिति नहीं रखा। उसके लिए सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई। पगारा से तिघरा और तिघरा से मोतीझील तक कांवड़ यात्रा निकाल कर बताया कि कैसे तिघरा को पघारा से जोड़ कर शहर की पेयजल समस्या का समाधान किया जा सकता है। इतना उल्लेख जरूरी है कि लोकजतन के संस्थापक संपादक शैलेन्द्र शैली भी इस कांवड़ यात्रा में दो दिन तक उनके साथ चले थे। 
उन्होंने ग्वालियर से मेहगांव तक की भी पदयात्रा की। शहर में साम्प्रदायिक सदभाव और दूसरे सवालों को लेकर वे अक्सर सक्रिय रहें हैं। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकें ग्वालियर के इतिहास की अमूल्य निधि है।

हां मगर सामाजिक चिंतायें उनकी होती हैं। जो खुद की चिंता नहीं करते। खुद की चिंता से मुक्त होने के लिए खराब आदतों और अज्ञानता का होना अनिवार्य है। मैं फिर दोहरा रहा हूं कि डा.राम विद्रोही बुरी आदतों वाले अच्छे आदमी हैं।


About Author

जसविंदर सिंह

राज्य सचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) मध्यप्रदेश

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