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कांचा इलैया, बनारस और मध्यम वर्ग

भारतीय अकादमीशियन, लेखक और दलित अधिकारों के कार्यकर्ता कांचा इलैया ने अभी कुछ दिनों पहले राम को एक सामान्य व्यक्ति बताया और कहा कि उनमें तमाम आम लोगों जैसे कुछ दुर्गुण भी थे। इस पर हिंदुत्व और राष्ट्रभक्ति के ठेकेदार भडक़ गये। ये घटनायें अब इस समाज में आम हो गयीं हैं। तर्क की बात करने, अपने अधिकारों की बात करने पर आप आसानी से देशद्रोही करार दे दिये जाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया समूह और स्थानीय अखबार इसमें बड़ी भूमिका निभाते हैं।


संध्या शैली
भारतीय अकादमीशियन, लेखक और दलित अधिकारों के कार्यकर्ता कांचा इलैया ने अभी कुछ दिनों पहले राम को एक सामान्य व्यक्ति बताया और कहा कि उनमें तमाम आम लोगों जैसे कुछ दुर्गुण भी थे। इस पर हिंदुत्व और राष्ट्रभक्ति के ठेकेदार भडक़ गये। ये घटनायें अब इस समाज में आम हो गयीं हैं। तर्क की बात करने, अपने अधिकारों की बात करने पर आप आसानी से देशद्रोही करार दे दिये जाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया समूह और स्थानीय अखबार इसमें बड़ी भूमिका निभाते हैं। 

इस देश में जहां अब छोटी से छोटी तार्किक बात का जोर शोर से विरोध किया जाने लगा है, सवाल यह है कि क्या ये तर्क अब नये गढ़े जा रहे हैं या फि र यह विरोध नया है। असल में तर्क तो सालों से दिये जा रहे हैं लेकिन जिस आक्रामक और हत्यारे तरीकों को अपनाया जा रहा है, वह नयी बात है। तर्क को न केवल शारीरिक हमलों के द्वारा वरन् मानसिक हमलों के द्वारा भी चुप करने की कोशिश की जा रही है।


यह केवल उनके साथ ही नहीं बल्कि अपने अधिकारों की मांग करने वाले आम नागरिकों के साथ भी किया जा रहा है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में छात्राओं की मांगों पर कुलपति के द्वारा ध्यान न देकर पुलिस द्वारा किये गये बर्बर लाठीचार्ज के पीछे की कहानी भी यही है। दरअसल आज जो सत्ता में बैठे हैं वे पूंजीवादी निजाम को येन-केन-प्रकारेण बनाये रखने के लिये लोकतंत्र का नकाब उतारकर हर आवाज को दबाने की नाकाम कोशिशों में लगे हैं। वे भूल गये हैं कि समाज कभी पीछे नहीं जाता है। सामंती मिजाज के साथ पूंजीवादी विकास के हमारे देश में किये गये प्रयोग का ही यह एक चरण है।


मुश्किल यह है कि इस देश का मध्यम वर्ग बड़ी संख्या में कभी यूरोप के मध्यम वर्ग के समान प्रगतिशीलता, तर्कवादिता के साथ नहीं रहा। यूरोप में नवजागरण और औद्योगिक क्रांति के बाद जो मध्यम वर्ग पैदा हुआ उसने समाज से धार्मिक अंधविश्वास कम करने,वैज्ञानिक सोच पैदा करने और उसके आधार पर जनंतत्र का निर्माण करने में बड़ी भूमिका निभाई लेकिन हमारे यहां का मध्यम वर्ग समाज में अंधविश्वास को बनाये रखने,विज्ञान की स्कूल, कॉलेज में पढ़ाई करने के बाद भी धार्मिक आडंबरपूर्ण जीवन बिताने में विश्वास करता रहा। इसका एक बड़ा कारण खुद उसके दिमाग में वर्णाश्रमी श्रेष्ठता भाव का बैठा होना भी था।


आज पूरे देश में एक धार्मिक विद्वेष का वातावरण है। अल्पसंख्यक डरा हुआ महसूस करते हैं। दलित अपने संवैधानिक अधिकारों को आसानी इस्तेमाल नहीं कर सकते और महिलाओं को एक बार फिर से घरों की चौखट के भीतर ढकेलने की कोशिश की जा रही है। बनारस की छात्राओं की शिकायत पर प्रौक्टर और संबंधित पुलिस अधिकारी के जवाब इसी की बानगी है। उत्तरप्रदेश में बनायी गयी  एंटी रोमियो स्क्वैड असल में लड़कियों की सुरक्षा के लिये नहीं बल्कि भाजपा और संघ परिवार के गुंडों के जरिये आम जनता को डराने धमकाने के लिये बनाये गये दल थे यह भी इससे साबित हो गया है। लेकिन इसके बावजूद भारतीय मध्यम वर्ग वॉट्स अप युनिवर्सिटी के माध्यम से कभी अल्पसंख्यकों कभी आरक्षण के बहाने दलितों और कभी महिलाओं के खिलाफ लिखे जाने वाले पोस्ट को आगे बढ़ा-बढ़ा कर अपने अल्प ज्ञान और कूूपमंडूकता का प्रदर्शन करते नहीं अघा रहा है।


पेट्रोल के बढ़ते भाव, महिलाओं के लिये बने कानूनों को कमजोर करने की कोशिश, विदेश नीति को अमरीका के यहां पर गिरवी रखने की बढ़ती साजिशें, स्कूलों, अस्पतालों की सरकारी सेवाओं को बंद करके देश की जनता को और भी अधिक अशिक्षित बीमार और बेरोजगार करने की साजिशें और राशन प्रणाली को बंद करके गरीब जनता के मुंह से निवाला छीनने और किसान की पैदावार की सरकारी खरीद को ही बंद करने की कोशिशों की ओर इस मध्यम वर्ग का ध्यान ही नहीं है।
लेकिन इस देश की गरीब, मेहनतकश जनता शासक वर्ग की इन चालाकियों को समझ रही है। पी.साईनाथ के शब्दों में ‘‘गरीब बहुत कुछ बोल रहे हैं, बहुत कुछ समझ रहे हैं सवाल यह है कि क्या उन्हें मीडिया देश के सामने ला रहा है।

 

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