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अमृतलाल वेगड़ - अंतिम यात्रा पर नर्मदा यात्री

हल्का सा उठंगा और ढीला पाजामा और खादी का कुर्ता पहने, छोटे-छोटे खिचड़ी बालों और सफाचट चेहरे वाला वह बुजुर्ग अमूमन मुस्कुराता दिखता। वह अनुभवी पोपली मुस्कान और पुराने ढब वाले चश्में पीछे से चमकती आंखे, उस शख्स की सादगी और सरलता का पता देती थी।


मनोज कुलकर्णी
हल्का सा उठंगा और ढीला पाजामा और खादी का कुर्ता पहने, छोटे-छोटे खिचड़ी बालों और सफाचट चेहरे वाला वह बुजुर्ग अमूमन मुस्कुराता दिखता। वह अनुभवी पोपली मुस्कान और पुराने ढब वाले चश्में पीछे से चमकती आंखे, उस शख्स की सादगी और सरलता का पता देती थी। उन्हें देख एक बारगी तो लगता था कि किसी गांधी-आश्रम के कोई विनम्र कार्यकर्ता होंगे। हमारे जेहन में अंकित बिखरे बालों, फहराती दाढिय़ों, फूलदार कुर्ता-जिंस पहने सिगरेट फूंकते चित्रकारों, ऐनक-धारी चिंतित चेहरों वाले ख्यात लेखकों की जो छवियां अंकित है, उसमें उक्त शख्सियत फिट न बैठती थी। सुव्यवस्थित पेंट-शर्ट और चमड़े की चमचमाती सैंडलों वाले गंभीर प्राध्यापकीय चौखटे में भी वह छवि अट नहीं पाती थी।

अमृतलाल वेगड़, हालांकि न केवल मुकम्मल चित्रकार थे, सधे हुए लेखक भी थे। प्राध्यापकी उनका पेशा रही। मगर, उनकी पहचान जुड़ी नदी नर्मदा से। नर्मदा की सुंदरता का वह अनन्य चितेरा और अनथक यात्री इसी 6 जुलाई को अंतिम यात्रा पर निकल गया।

3 अक्टूबर 1928 को जन्में वेगड़ ने क्रांति-निकेतन में कला-शिक्षा पायी थी। कला गुरु नंदलाल बोस से। उसके बाद वे जबलपुर स्थित कला-संस्थान में प्राध्यापक बने। जाहिर है, अनेक युवा कलाकारों को उन्होंने वहां कला-शिक्षा दी। उनकी चर्चा मगर, नर्मदा की उनकी परिक्रमाओं के कारण होती है। उन यात्राओं के दौरान किये गये उनके सहज रेखांकनों से होती है। नर्मदा पर लिखे अनुपम यात्रा-वृत्तांतों से होती रही है।

चित्रकला में आसपास के प्राकृतिक और मानवीय सौंदर्य के साक्षात दर्शन और चित्रण का बहुत महत्व है। जबलपुर में रहने से दृष्य-चित्रण के लिये वेगड़ जी स्वाभाविक ही नर्मदा किनारे जाते रहें। वहां बार-बार जाने और नर्मदा को अलग-अलग कोणों से देखने के अनुभवों ने उन्हें नर्मदा-परिक्रमा के लिये उकसाया। कोई पचास बरस के करीब की उम्र में उन्होंने पहली बार नर्मदा-यात्रा शुरू की थी। लगभग 4000 किलोमीटर की उस यात्रा ने एक कलाकार को नदी और उससे जन्मी कुदरती सुंदरता से मिलवाया। नदी की घाटियों में बसी मानव-बस्तियों की अनमोल सामाजिकता को बेहद करीब से देखने-जानने के मौके दियें। उन्हीं तर्जुबों का संग्रहण उनकी लिखी पुस्तकों में मिलता है। उसी यात्रा के पड़ावों पर जन्में रेखांकनों और कोलाज-चित्रों ने उनके भीतर के चित्रकार को विशिष्ट बनाया।

नर्मदा की अपनी विशिष्टताएं हैं। देश के उत्तर-दक्षिण को विभाजित करती यह नदी हिमालयीन नदियों से कोटि बरस प्राचीन है। उसकी पुरातनता के पौराणिक-आख्यान हैं। असंख्य लोक-कथाएं भी।  इसके प्रवाह पर ना जाने कितने लोक-गीत हैं। यही नदी विंध्याचल-सतपुड़ा के जंगल सींचती है। उसका चरित्र अलहदा है। वह चंचल है, तो कहीं गंभीर भी। गहरी है कहीं, तो उथली भी। अपने जन्म-स्थान अमरकंटक में ही प्रेमी सोन से हुए मोह-भंग पर नर्मदा ने अलग दिशा पकड़ ली। सोन अलग रास्ते बह गयी। वह फिर किसी के मोह में नहीं फंसी। चिर कुंवारी रही। सहस्त्रबाहु ने उसे अपने बाहुपाश में बांधना चाहा। नर्मदा नहीं मानी। सहस्त्र धाराओं में छूट भागी।

जाहिर है, ये लोक-कथाएं अपने भूगोल और जीवन को समझने की नदी-घाटी वासियों कोशिशों से जन्मी रचनात्मक-भावाभिव्यक्तियां हैं। नर्मदा का सौंदर्य इसकी घाटियों में बसे आदिम मनुष्यों से लगा कर अमृतलाल वेगड़ जैसे आधुनिक चित्रकार को लुभाता रहा है। अपनी पहली नदी-यात्रा में जो जीवन और सौंदर्य-दर्शन वेगड़ जी को हुआ, उसके प्रभाव से वे उम्र भर के लिये नर्मदा-यात्री बन गयें।

यही नर्मदा पिछले कुछ वर्षों से विवादों में है। इसके प्रवाह को जगह-जगह बांधा जा रहा है। जिससे लाखों गरीब किसान और आदिवासी अपने घर-गांव से उजड़ गयें। उनके पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की गयी। जिसका पुरजोर विरोध भी हुआ। अविरल नदी को बांध देने से उसका बहाव ठहर रहा है।  उसका तेज ढला है। सौंदर्य छीज रहा है।
वेगड़ जी राजनीतिक नहीं थे। हालांकि हर कलाकार के पास एक राजनीतिक दृष्टि होनी ही चाहिए कि किसी मुद्दे पर अपनी बात रख सके। नदी उजाडऩे वालों की एक राजनीति है। जिसका सामना राजनीतिक ही हो सकता है। नदी नर्मदा के महान यात्री को सार्थक श्रद्धांजलि यही होगी कि नदी के सुंदरता लौटायी जाये ताकि भविष्य में वेगड़ जी जैसे और कलाकार-लेखक कुछ रच सकें।

अमृतलाल वेगड चले गयें। हमारे साथ मगर, नर्मदा की प्रचंड लहरों, ऊंची चट्टानों से सहसा कूदते झरनों, किनारों के घने जंगलों, घाटों, मंदिरों और परिक्रमावासियों के उनके बनाये असंख्य रेखांकन, कोलाज-चित्र और उनके लिखे जीवंत यात्रा-वृत्तांत बने रहेंगे।
नर्मदा के सौंदर्य साधक को अंतिम प्रणाम। 

फोटो - गूगल

 

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