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तीन तलाक : यह विधेयक पूरी तरह से अनावश्यक और अनुचित है

यह विधेयक विवादास्पद है। ऐसे विधेयक पर हितधारकों की बात सुननी पड़ेगी, विशेषज्ञों की बात सुननी पड़ेगी। आप यदि इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं, तो महिला संगठनों से बात करनी पड़ेगी। और इसके स्टेंडिंग कमेटी में जाना चाहिए था। आप इसे कमेटी में नहीं ले गए क्योंकि आप को हड़बड़ी है। कौन सी हड़बड़ी है?

फोटो-गूगल

लोकसभा में तीन तलाक विधेयक पर 27 दिसंबर को बहस में हिस्सा लेते हुए, सीपीआइ (एम) नेता, मोहम्मद सलीम ने प्रस्तावित विधेयक को पूरी तरह से अनावश्यक तथा अनुचित करार देते हुए कहा कि इस बात का सबूत यह है कि एक साल पहले 27 दिसंबर को हमने यहां इस पर चर्चा की थी और बिल पास किया था। हमने इस का विरोध किया था। वाक आउट भी किया था। आपने हमारी बात नहीं सुनी। राज्यसभा में कमेटी बनायी गयी। कमेटी इस पर चर्चा कर रही है, रिपोर्ट नहीं आयी है। फिर आप ने अध्यादेश लगा दिया। यह इसका नमूना है कि यह सरकार किस तरह से चल रही है और संसद को किस तरह लिया जाता है, संसदीय समिति को किस तरह से लिया जाता है।

उस समय भी पीठासीन अध्यक्ष महोदया ने यह कहा था कि यह विधेयक विवादास्पद है। ऐसे विधेयक पर हितधारकों की बात सुननी पड़ेगी, विशेषज्ञों की बात सुननी पड़ेगी। आप यदि इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं, तो महिला संगठनों से बात करनी पड़ेगी। और इसके स्टेंडिंग कमेटी में जाना चाहिए था। आप इसे कमेटी में नहीं ले गए क्योंकि आप को हड़बड़ी है। कौन सी हड़बड़ी है? आप एक साल में विधेयक पारित नहीं करा पाए और आज फिर लोकसभा में ले आए। आप वही दोहरा रहे हैं। आपने क्या कहा? हमें जिस मामले में आपत्ति थी, उसको थोड़ा नरम कर दिया है। कहां नरम किया है? इसीलिए तो कमेटी बनी थी। कमेटी की रिपोर्ट आती और कमेटी में पता चलता कि क्या आपत्तियां हैं।

मैं इधर-उधर की बात नहीं कर रहा हूं, इस विधेयक की जो धारा-7 है, उस पर हमारी मुख्य आपत्तिय यह थी कि यह एक दीवानी मामला है, जिसे फौजदारी मामला नहीं बनाया जाए। आज हमें बीजेपी की बेंच की तरफ से दो 'इस्लामी स्कॉलर्स' की बात सुनने को मिली। मैडम लेखी बोलीं, फिर मुख्तार नकवी साहब बोले। मैं कुरान, हदीस, शरीयत की बात नहीं कर रहा हूं। उस बारे में बात करने के लिए बीजेपी काफी है। उस बारे में सुब्रमण्यम स्वामी ने बोल दिया है कि उत्तर प्रदेश में मुसलमान महिलाओं के वोट से जीत गए, इसलिए हम बिल ला रहे हैं। यह बात मैंने नहीं कही। आज आप कह रहे हैं कि मुसलमान महिलाओं को इंसाफ दिलाने के लिए बिल ला रहे हैं। जिस पार्टी के नेता (इससे उल्टी बातें) कहकर नेता बन गए...वे कहेेंगे कि हम इंसाफ दिलाएंगे और हम मान लेंगे? 

भाजपा के सांसदों के शोर-शराबे और आपत्तियों का जवाब देते हुए मोहम्मद सलीम ने कहा कि उन्होंने जो कुछ कहा उसकी सचाई साबित करने वाले रिकार्ड हैं, वीडियो दिखाएंगे। उन्होंने सत्ता पक्ष को चुनौती देते हुए कहा--आप और मुसलमान औरतों के बारे में बोलेंगे? आप के सावरकर ने क्या बोला, गोलवालकर ने क्या बोला, आरएसएस के नेता क्या बोलते हैं...। सब के पत्र हैं, पुलिंदा खोलकर रख देंगे। मोहम्मद सलीम ने आगे इस मामले में सरकार के लैंगिक न्याय की दुहाई का सहारा लेने पर सवाल उठाए।

लैंगिक न्याय की बात की जा रही है। आप जो विवाह और तलाक की बात कर रहे हैं, यह जो तमाम मसले है। लैंगिक न्याय का मसला है। हमारे जैसे वामपंथियों के यहां आने से पहले से और जब से यह सदन शुरू हुआ है, वामपंथी लैंगिक न्याय की बात करते आए हैं। आज भी हम यही कर रहे हैं। लेकिन, सवाल यह है कि आप कह रहे हैं कि आप को मुसलामन महिलाओं को इंसाफ दिलाना है। यही उद्देश्य तब भी बताया गया था, जब उधर से यह बिल लाया गया था। आज मुस्लिम विवाह की बात कर रहे हैं, उस समय तलाक का मामला आ गया था...। हर बार मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा का दावा किया जा रहा था। लेकिन, उस वक्त भी मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा नहीं हुई, इस बार भी नहीं होगी। मुस्लिम महिलाएं, मुस्लिम समुदाय का हिस्सा हैं, जिसमें मर्द भी आते हैं और औरतें भी। मुसलमान, इस देश का हिस्सा हैं। ये भारतीय मुसलमान हैं। अगर आप देश के नागरिकों के साथ इंसाफ नहीं करेंगे, तो देश के साथ इंसाफ नहीं करेंगे। यहां रोजाना मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है, मानवता का हिस्सा तो भारतीय मुसलमान भी हैं। आप मुसलमान मर्दों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाएंगे, मुस्लिम समुदाय को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाएंगे, उनको बोलने का हक, खुराक का हक, चलने-फिरने का हक,  इबादत करने का हक नहीं देंगे...आज नोयडा में आप जुम्मे की नमाज पढऩे का हक छीन रहे हैं और कह रहे हैं कि हम मुस्लिम महिला को हक दिलाएंगे। ये मगरमच्छ के आंसू हैं। अभी मुस्लिम महिलाओं के नाम पर जो आंसू बहाए जा रहे हैं, मगरमच्छ के आंसू हैं। एक शेर सुन लीजिए। ''दामन लहू के दाग आप के इस झूठ के अश्कों से नहीं धुलाए जाएंगे। आपके आंसू से ये दाग नहीं धुलेंगे। पहले अपने दामन को देखें। अभी बुलंदशहर में क्या हुआ? बुलंदशहर में पुलिस अफसर को मारा गया। आप कह रहे थे कि इंसाफ दिलाएंगे? आपकी ओर से यह इंसाफ की, न्याय की पहली गुहार है। अगर आप अन्याय पर आधारित समाज खड़ा करते हैं, आप न्याय नहीं कर सकते हैं।

दूसरे, यह कहा गया है कि यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला है। सुष्मिता देव जी ने भी कहा है कि यह एक नंबर की गलत बात है। सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया था, उसमें यह नहीं कहा गया था लॉ मिनिस्टर जी कि आप कानून ले आइए। अल्पसंख्यक आयोग जो प्रस्ताव लाया था, उसमें कहा गया था कि यह धर्म का मामला है, आस्था का मामला है, पर्सनल लॉ का मामला है। इस पर सुप्रीम कोर्ट कानूनी फैसला नहीं करेगा, पाॢलयामेंट कानून बनाएगी। जो लोग यह कह रहे थे कि यह गैर-कानूनी है और यह नहीं चलता, उससे मना किया गया था। अदालत ने फैसला कर दिया कि अमान्य तो अमान्य। यह पहली बात है। यहां शायरा बानो का नाम आया। उसके केस के सिलसिले में शाह बानो का मामला आया। दोनों केसों के बीच में इलाहाबाद हाई कोर्ट में 2002 में शमीमा आरा का केस आया। उस केस में हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक, तीन तलाक को कहा गया कि यह गलत है, असंवैधानिक है। यह 2002 में कहा गया था, यह नयी बात नहीं है। आज हमारे प्रधानमंत्री जी को अचानक तीन तलाक याद आ गया, ऐसी बात नहीं है। तीन तलाक को लेकर पचास साल से लड़ाई चल रही है। मुस्लिम महिला संगठन लड़ रहे हैं, प्रोग्रेसिव ग्रुप लड़ रहे हैं। हम समझते हैं कि इतनी जो बहस की जा रही है, वह मुख्य मुद्दे से ध्यान हटानेे लिए की जा रही है।
आज हमारे देश में अल्पसंख्यक परेशान हैं। परेशानी बाकी लोगों की भी है, लेकिन मुस्लिम अल्पसंख्यक खासतौर पर परेशान हैं। उनकी समता का सवाल है, उनकी सुरक्षा का सवाल है, उनकी बराबरी का सवाल है। आज से 10 साल पहले, सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के बाद जो चर्चा हो रही थी, उसे आज पीछे धकेल दिया गया है, उसे भुलाया जा रहा है। सवाल बराबरी का है। हम जब बराबरी की मांग करते हैं, आप खामोश क्यों हो जाते हैं? हम बराबर के अधिकार चाहते हैं। बेशक, हम औरत और मर्द के बीच भी बराबरी चाहते हैं, जो लैंगिक न्याय का सवाल है। यह आप तभी कर सकते हैं जब आप समता और समानता सुनिश्चित करें।

अब सवाल यह है कि असुरक्षा बनी हुई है। आप सुरक्षा मुहैया कर ही नहीं सकते हैं, वह चाहे सामाजिक सुरक्षा हो, परिवार की सुरक्षा हो, राजनीतिक सुरक्षा हो या सांस्कृतिक सुरक्षा हो। मैं यह समझता हूं कि इस बिल का एक राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है, जो गलत है। यह दीवानी मामला है और आप बेहतर जानते हैं, लेखी जी ने भी कहा है कि यह, दो विपरीत लिंग के वयस्कों के बीच एक कांट्रैक्ट या समझौता होता है। यह यह समझौता टूटता है, तो यह दीवानी किस्म का मामला है। उसे आप फौजदारी किस्म का मामला क्यों बना रहे हैं? जो आपराधिक मामले हो रहे हैं, जब उन्हें जिंदा जलाया जा रहा है, आप उसे फौजदारी का जुर्म नहीं मानते हैं। जब रेप होता है, आप जुलूस निकालते हो। चाहे आसिफा का मामला हो, चाहे दलित महिला को जलाकर मारा गया हो, आप वहां हिंदुत्व के नाम पर राजनीति करते हो, नाइंसाफी के पक्ष में खड़े होते हो, इंसाफ दिलाने का विरोध करते हो। यहां आकर आप कह रहे हैं कि हमें मुस्लिम परिवार को देखना है। अगर मुस्लिम महिला को इंसाफ देना है, न्याय देना है, तो आप पहले सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ बोलो, चूंकि उससे सबसे ज्यादा परेशानी औरतों को होती है। आप जो झूठे लोगों को फसाते हो, आतंकवादी कहकर रोजाना जिस तरह से सांप्रदायिक प्रोफाइलिंग की जा रही है, उससे मुस्लिम महिलाओं को सबसे ज्यादा परेशानी होती है।

तीसरी बात यह कि शिक्षा के जरिए, रोजगार के जरिए, उनका शक्तिकरण कीजिए। वह आप कर नहीं रहे हैं। नकवी साहब जो इतने भाषण दे रहे हैं कि विश्व में इस मुल्क में यह हो गया, उस मुल्क में वह हो गया, मिस्र में हो गया, ईरान में हो गया। लेकिन, आज इंडिया में मुसलमानों की हालत, जो है उससे बदतर क्यों हो रही है? उसे बेहतर करने के लिए आप मुस्लिम महिलाओं की हालत को बेहतर करो। उनकी हालत तो और बुरी हो रही है।

मैं समझता हूं संसदीय कमेटी बनानी पड़ेगी और इस विधेयक के हर पहलू को देखना पड़ेगा। यह कोई हानिरहित विधेयक नहीं है। यह सिर्फ बहस तलब तथा विवादास्पद ही नहीं है, इसके और भी कई पहलू हैं। इसकी बुनियाद ही गलत बयानी के ऊपर रखी गयी है। मैं चाहता हूं कि लैंगिक न्याय हो। मैं चाहता हूंं कि आसान तलाक खत्म हो। वह सभी के लिए हो, सभी समुदायों के लिए हो। अगर इंसाफ दिलाना है, लैंगिक न्याय दिलाना है, तो यह संप्रदाय विशेष के लिए ही नहीं हो सकता है। इसे देश विशेष के लिए बनाना होगा। देश के सभी लोगों को न्याय पाने का हक है। यह छांट-छांट कर नहीं कर सकते। ऐसे तो आप मुस्लिम महिलाओं के हालात और बिगाड़ेंगे, उन्हें सुधारेंगे नहीं। इसलिए, इसके लिए संयुक्त संसदीय समिति गठित करें। सुप्रीम कोर्ट ने भी यही कहा है कि यह संसद का ही हक है।  

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