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लोकजतन सम्मान 2019 : डॉ.राम विद्रोही-एक परिचय

पिछले सत्तावन सालो से पत्रकारिता से सक्रिय रूप से जुड़े हुए विद्रोही जी ऐसे व्यक्तित्व हैं ,जिनका नाम हिन्दी पत्रकारिता में उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। उनका परिचय औपचारिक बॉयोडाटा के खांचे में नही समा सकता। तब भी पारंपरिक हिसाब से कहा...

पिछले सत्तावन सालो से पत्रकारिता से सक्रिय रूप से जुड़े हुए विद्रोही जी ऐसे व्यक्तित्व हैं ,जिनका नाम हिन्दी पत्रकारिता में उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। उनका परिचय औपचारिक बॉयोडाटा के खांचे में नही समा सकता। तब भी पारंपरिक हिसाब से कहा जाए तो यह कि; 
 उनका जन्म 9 जुलाई 1943 को  मध्यप्रदेश के गुना में हुआ।

 अपने पत्रकारिता के काम के दौरान वे दैनिक भास्कर-ग्वालियर,जय राजस्थान, राजस्थान पत्रिका उदयपुर-जोधपुर से इस दौरान सम्बद्ध रहे। आचरण-ग्वालियर के सन 1984 से 26 साल तक सम्पादक रहने के बाद सम्प्रति वे इस समाचार पत्र के सलाहकार सम्पादक है।
 विद्रोही जी का लेखन सिर्फ पत्रकारिता तक सीमित नही रहा । सक्रिय पत्रकारीय कार्य की लम्बी ड्यूटी करते हुए डॉ.विद्रोही की आधा दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। अंत्योदय, रस्किन से राजस्थान तक, नए दौर की पत्रकारिता, सुनो हे साधो, प्रथम स्वाधीनता संग्राम में ग्वालियर, यादों का सफर एवं हाल ही में प्रकाशित ग्वालियर में एक सौ साल के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास पर नई सुबह पुस्तक काफी चर्चित रहीं है। नागर गाथा उनकी सन्दर्भ कोष है।

 इनके अलावा राजनीतिक सामाजिक विषयों पर अभी तक दस हजार से अधिक लेख समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके है।

 मध्यप्रदेश शासन की ओर से पत्रकारिता के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए डॉ.विद्रोही को राज्य स्तरीय आंचलिक पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। मप्र और राजस्थान की दो दर्जन से अधिक सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं ने उल्लेखनीय हिंदी सेवा के लिए उन्हें सम्मानित किया है। हिन्दी क्षेत्र में निरंतर प्रयोग करते रहे डॉ.राम विद्रोही उस पीढ़ी के पत्रकार है जो अपने विचारों के माध्यम से समाज परिवर्तन  का अलख जगाते रहे है।
 सामाजिक सरोकारों से जुड़े डॉ.विद्रोही लिखते भी रहे और उसके लिए मैदान में संघर्ष भी करते रहे। सन 1962 में डॉ.राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में समाज परिवर्तन के जन संघर्षों में सोशलिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता के रुप में शामिल होकर 14 बार जेल यात्राएं कर चुके  है। जय प्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी रही है। 

 इतना सब भी असली व्यक्तित्व का परिचय नहीं है । इसलिये कि वे किसी प्रोफेशन या विधा में बंधे शख्स नहीं हैं। वे विद्रोही हैं - हर बंधी लीक को छोडक़र रास्ता बनाने वाले। अपने लिए सुविधा मार्ग नही आम रास्ता -जनपथ- तामीर करने वाले। ‘कोई कीमत भले चुकाओ / लेकिन जल कर रात बिताओ’ के संकल्प पर चलकर अपने प्रभामण्डल से आसपास का सब कुछ रौशन करने वाले। लेकिन इसी के साथ अपनी आभा का आतंक पैदा किये बिना सबके साथ दोस्त बनकर सहज रहने वाले।

इस अंक में उन्हें उनके, अपेक्षाकृत युवा सहकर्मियों ने अपने संस्मरणों में याद किया है। मेघना ने उन्हें प्यारे और केयरिंग दोस्त पिता के रूप में देखा है। अपने हीरो के रूप में; मगर वे सबके हीरो हैं और रहेंगे।

लोकजतन के पहले सम्मान के अधिकारी उनसे बेहतर कोई नही हो सकता किन्तु, जैसी कि एक मित्र पत्रकार ने टिप्पणी की थी, उन्हें सम्मानित करके असल मे यह सम्मान सम्मानित हुआ है ।
 


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Badal Saroj

लेखक लोकजतन के संपादक एवं अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं.

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