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मंत्रीमंडल का विस्तार

अब जब विधान सभा चुनावों में कुछ माह ही शेष हैं, तब मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रीमंडल का विस्तार किया है। मगर अंगूर अभी टपके नहीं हैं। लटके हैं। मुख्यमंत्री ने दोहराया है कि यह विस्तार अंतिम नहीं है।


(जसविंदर सिंह)
अब जब विधान सभा चुनावों में कुछ माह ही शेष हैं, तब मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रीमंडल का विस्तार किया है। मगर अंगूर अभी टपके नहीं हैं। लटके हैं। मुख्यमंत्री ने दोहराया है कि यह विस्तार अंतिम नहीं है।


यूं मंत्रीमंडल का विस्तार मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है, मगर जिस विस्तार को इतने लंबे समय तक लटकाया गया। विस्तार का एक खास समय चुना गया। उस समय में भी मंत्रीमंडल का पूर्ण गठन करने की बजाय कुछ लोगों को और रिझााने की कोशिश की गई, तो जाहिर है कि विस्तार पर चर्चा होगी ही।


पहले एन तीन मंत्रियों के बारे में चर्चा की जाये, जिन्हें विस्तार के बाद शामिल किया गया है। पहले नारायण सिंह कुशवाह हैं। वे ग्वालियर से विधायक हैं। मुख्यमंत्री के पहले दो कार्यकाल में वे राज्य मंत्री रहे हैं। पिछली सरकार में वे गृह राज्य मंत्री थे। तीसरी बार जीतने के बाद मंत्रीमंडल में शामिल होने का उनका मजबूत दावा था। मगर अचानक उन्हें मंत्रीमंडल से बाहर किया गया और वे पूरे साढ़े चार साल मंत्री बनने के लिए इंतजार करते रहे। उनकी पृष्ठभूमि की चर्चा की जाये तो वे शुद्व सब्जी उत्पादक किसान हैं। सिर्फ जातिय समीकरण को साधाने के लिए उन्हें टिकट दिया गया था। वे जीत गए। फिर जातिय, क्षैत्रिय और भाजपा के अंदरूनी संतुलनों को बनाये रखने के लिए उन्हें मंत्रीमंडल में शामिल कर लिया गया। सुना है कि 2013 में विधान सभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री की सूची में उनका भी नाम था। मगर आखिरी समय संघ ने हस्तक्षेप कर उनका नाम कटवाया था।


दरअसल उनके विधान सभा क्षेत्र में गोल पहाडिय़ा में संघ और बजरंग के कार्यकर्ता एक दंगा करना चाहते थे। वे चाहते थे कि प्रशासन और पुलिस उन्हें संरक्षण दे। मगर नारायण सिंह ने पुलिस से हस्तक्षेप करवा कर दंगा होने से रुकवाया था। सांस्कृतिक संगठन को यही स्वीकार्य नहीं था। इसलिए उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया। अब उन्हें लिया गया है, तो सरकार, भाजपा और संघ सबने समझ लिया है कि जनता में असंतोष है। फिर से सत्ता में आने के लिए जातिय समीकरणों को साधने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। संघ परिवार ने भी यदि उन्हें मंत्री बनाने की हरी झंडी दी है तो बात बिलकुल साफ है कि संघ परिवार भी जनता की नाराजगी को समझ रहा है।


दूसरे मंत्री बालकृष्ण पाटीदार हैं। पाटीदार समुदाय आम तौर पर प्रदेश में भाजपा का समर्थक माना जाता है। मगर केन्द्र और राज्य सरकार की नीतियों ने ग्रामीण जनता और किसानों में असंतोष पैदा किया है। इसकी अभिव्यक्ति मालवा और निमाड़ मेंं जून महीने में हुए आंदोलन में हुई थी। जब मंदसौर में पुलिस फायरिंग से छ: किसानों की हत्या हो गई थी। शहीद हुए छ: किसानों में से चार पाटीदार समुदाय के हैं। इस घटना के बाद दमन के जिस दौर से इस क्षेत्र का किसान गुजरा है, उससे भाजपा के खिलाफ उनका गुस्सा और मुखर हुआ है। मंदसौर और आसपास के कुछ क्षेत्रों में तो भाजपा नेता किसान विकास यात्रा तक नहीं निकाल पाये हैं।


गुजरात के पाटीदार आंदोलन ने इस असंतोष को और हवा दी है। हार्दिक पटेल भी इस क्षेत्र का दौरा कर चुका है। वह भाजपा को सबक सिखाने का आव्हान भी कर चुका है। बालकृष्ण पाटीदार को मंत्री बनाकर मुख्यमंत्री ने पाटीदार समुदाय की नाराजगी को कम करने की कोशिश की है। यह तो वक्त ही बतायेगा कि पाटीदार समुदाय की नाराजगी कम हुई है या और बढ़ी है।


शामिल किये गए तीसरे मंत्री जालिम सिंह पटेल हैं। यूं वे काफी लंबे समय से विधायक हैं, मगर मुख्यमंत्री के प्रति उनकी वफादारियां संदेह में रही हैं। वे भाजपा नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल के छोटे भाई हैं। शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनने पर उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा में उपजे असंतोष में वह भी शामिल थे। उमा भारती के साथ प्रह्लाद पटेल ने भी भाजपा छोड़ दी थी। शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ डंपर कांड वाला भ्रष्टाचार का मुद्दा प्रह्लाद पटेल ने ही उठाया था। खैर बाद में वे उमा भारती का साथ छोड़ कर उमा भारती से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे। किंतु अभी तक उनका पुनर्वास नहीं हुआ है। शिवराज सिंह चौहान को एक तो जालिम सिंह पटेल के बहाने प्रह्लाद पटेल को उप$कृत करना था,दूसरा उमा भारती के समुदाय में भी घुसपैठ बनानी थी।
किंतु कारण कुछ और भी हैं। एनटीपीसी पावर प्लांट में नरसिंहपुर के जिन किसानों की जमीने गई हैं, वे मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को रोजगार देने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। पिछले डेढ़ माह से चलने वाले आंदोलन को कुचलने के लिए शिवराज सरकार ने दमन का सहारा लिया है। आंदोलनकारी महिलाओं पर रात के अंधेरे में लाठीचार्ज किया है। आंदोलनकारियों पर झूठे मुकदमें लगाकर उन्हें जेल भेजा है। मगर इसके बाद भी आंदोलन जारी है। विपक्षी दलों के नेताओं के साथ ही भाजपा के बागी नेता भी आंदोलनकारी किसानों से मुलाकात कर चुके हैं। मुख्यमंत्री इस असंतोष की भरपाई जालिम सिंह को मंत्री बनाकर करने की कोशिश कर रहे हैं।


विधान सभा चुनावों से पहले भाजपा उप चुनावों के भूत से परेशान है। मुंगावली और कोलारस के विधान सभा चुनावों में भाजपा संकट में है। इसलिए जातिय समीकरणों का सहारा ले रही है। मंत्रीमंडल का विस्तार इन विधान सभा क्षेत्र के अंदर आने वाली जातियों को भी खुश करने की कोशिश है। इसीलिए आदर्श चुनाव आचार संहिता को ताक पर रख कर मंत्रीमंडल का विस्तार किया गया है।

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